प्राचीन भारतीय चिंतन के स्रोत

From enIKSwiki
Jump to navigation Jump to search

Select Category :

भूमिका- 

भारतवर्ष जिन-जिन देशों के व्यापारिक राजनीतिक और सांस्कृतिक या धार्मिक संपर्क में आया वहां के लोग सुनी सुनाई बातों के आधार पर भारत का वृतांत लिखते रहे कुछ लोग उत्सुकता या जिज्ञासा बस इस देश में यात्रा के लिए आए और अपने निरीक्षक तथा अनुभव का पुस्तक के रूप में लिखे कुछ लोग विदेशी राजाओं के दूत बनकर भारतीय राजाओं की सीमाओं में आए और इस देश की राजनीतिक सदाचार आचार व्यवहार आदि पर अपने निरीक्षक लेखन बद्ध कर गए

यूनानी स्रोत- 

विदेशी विवरण यूनानियों एवं रोम निवासियों के हैं कालक्रम की दृष्टि से यूनानी लेखकों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है सिकंदर से पूर्व ,सिकंदर के समकालीन एवं सिकंदर के परवर्ती

सिकंदर के पूर्व- 

स्काईलेक्स यूनानी सैनिक था  I जो ईरान के सम्राट दारा की नौकरी में था उसको सिंध एवं ईरान की खाड़ी के तट के सर्वेक्षण का कार्य सौपा गया था I उसने अपनी पुस्तक में भारत का वर्णन किया है I हीरोडोटस 484 ई० पू० के लगभग विद्यमान था I उसने यूनानी ईरानी आक्रमण तथा भारत के साथ ईरान के संबंधों पर प्रकाश डाला है I वह कभी भारत नहीं आया था किंतु उसने सीमा प्रांत तथा ईरानी साम्राज्य के संबंधों पर प्रकाश डाला है I उसका वर्णन प्रमाणित नहीं माना जा सकता क्योंकि उनका ज्ञान सीमावर्ती लोगों तक सीमित था I टीसीएस एक चिकित्सक था इसके वर्णन के स्रोत ईरानी है इतिहासकारों का विचार है कि इसके विचार काल्पनिक है I

सिकंदर के समकालीन- 

सिकंदर के समकालीन लेखको में एरिस्टोबुलस नियार्कस ओनिसक्रेटि स यूनेनीस एरियन आदि के विवरण है I यह लेखक सिकंदर के भारतीय आक्रमण के समय सिकंदर के साथ थे I अतः उनके विवरण में बहुत कुछ विश्वसनीय वर्णन मिलता है I  उनके मूल लेख तो  अप्राप्त हैं परंतु यत्र तत्र उनके विवरण के अंश संकलित हैं I इससे सिकंदर के भारत आक्रमण का रोचक और आलोचनात्मक विवरण मिलता है I

सिकंदर के परवर्ती- 

सिकंदर के पर्वतीय लेखन में मेगस्थनीज डायमेक्स, प्लिनी ,टालेमी ,डायोडोरस, एरियन, प्लुटार्क ,स्ट्रेबो , आदि के नाम उल्लेखनीय  है I इसमें सबसे महत्वपूर्ण विवरण मेगस्थनीज का है जिसने इंडिका नामक पुस्तक में चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था का वर्णन किया है I यह प्रसिद्ध ग्रंथ तो अप्राप्त है लेकिन उसके अनेक महत्वपूर्ण अंश परवर्ती लेखन की रचनाओं में उद्धृत है जिसे तत्कालीन भारतीय सामाजिक राजनीतिक और धार्मिक दशा पर बड़ा उपयोगी प्रकाश पड़ता है I एरियन जस्टिन ,डायोडोरस ,पैट्रोक्लिज आदि के विवरण मुख्यतः सिकंदर के अभियान से ही संबंधित है  जो एक पक्षी होते हुए भी तत्कालीन भारतीय इतिहास की अच्छी सामग्री है एरावस्थनीज ने जो सिकंदरिया के पुस्तकालय का अध्यक्ष था विधिवत भूगोल लिखा है I पेट्रोक्लिज सेल्यूकस के समय से सिन्ध कैस्पियन क्षेत्र में गवर्नर था उसने तत्कालीन भारत का वर्णन किया है I

यूनानी वर्णन विश्वसनीय नहीं है I इसके कई कारण है पहला कारण तो यह है की यूनानी लेखक भारतीय भाषाएं नहीं समझते थे  I अतः तथ्यों को ठीक तरह से समझने में कठिनाई हुई होगी दूसरी बात यह थी कि उन्होंने पूरा भारत नहीं देखा जो कुछ भी लिखा एकांगी था I

चीनी स्रोत- 

चीनी यात्री में फाह्यान ह्वेनसाग तथा इत्सिंग प्रमुख है I फाह्यान चंद्रगुप्त द्वितीय के राज्यकाल में भारत आया था तथा उसने बौध तीर्थ का वर्णन किया था I उसने गुप्तकालीन इतिहास पर प्रचुर प्रकाश डाला है I ह्वेनसांग हर्ष के समय में भारत आया था तथा उसने समूचे भारत का भ्रमण किया था  I वह 15 वर्ष तक भारत में रहा तथा नालंदा विश्वविद्यालय में कुछ दिनों तक शिक्षा भी प्राप्त की उसने हर्ष के राज्यकाल का विस्तृत वर्णन किया है I इसके यात्रा वर्णन में तत्कालीन भारतीय राजनीतिक सामाजिक और धार्मिक जीवन के अध्ययन के लिए प्रचुर सामग्री मिलती है I सातवीं शताब्दी के अंत में इत्सिंग भारत आया उसके वर्णन से नालंदा विश्वविद्यालय विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा तत्कालीन अवस्था का ज्ञान होता है I

तिब्बती स्रोत- 

तिब्बती साहित्य द्वारा भी भारतीय राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है I इसमें से अधिकांश ग्रन्थ का संबंध यद्यपि तिब्बत के इतिहास से है किंतु भारतीय दृष्टि से भी वे महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देशों के बीच गहरे संबंध थे I

मुस्लिम स्रोत- 

मुस्लिम इतिहासकारों और यात्रियों के विवरण से भारत की 11वीं तथा 12वीं शताब्दी की राजनीतिक अवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है I अलबरूनी की विख्यात पुस्तक तहकीक ए हिंद से राजपूत कालीन भूगोल राजनीति समाज धर्म रीति रिवाज आदि पर उपयोगी प्रकाश पड़ता है I अलबरूनी महमूद गजनवी के समय में भारत आया था I उसकी पुस्तक से भारत की तत्कालीन स्थिति के बारे में बहुत उपयोगी ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती हैI  भारत में आकर उसने संस्कृत भी सीख ली थी तथा उसके संस्कृत के ज्ञान का उसकी पुस्तक पर प्रभाव है I अलबरूनी की किताब फुतूह अलबुल्दान सुलेमान के सिलसिला तुल तवारीख अलमसऊदी के मरुजुल जहाब आदि ग्रंथ तात्कालिक परिस्थितियों और जनसाधारण की व्यवहार प्रणाली की जानकारी देते हैं I इनके अतिरिक्त हसन निजामी की तबकात ए नासिरी फरिश्ता की तारीख ए फरिश्ता I निजामुद्दीन की तारीख ए अकबरी आदि पुस्तके भी पूर्व मध्यकाल के संबंध में ऐतिहासिक सामग्री की स्रोत हैं I

पुरातात्विक स्रोत- 

पुरातत्व के विद्वानों ने वैदिक काल के मृत अवशेषों से प्रारंभिक स्मृतियों से विभिन्न गुफाओं के अध्ययन से विभिन्न खभों की जानकारी से मंदिरों की बनावट और वहां प्राप्त सूचनाओं के अवलोकन से प्राचीन भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था समझने की दिशा में सहयोग मिला है I पुरातत्व के प्राचीन अभिलेख प्राचीन मुद्राओं प्राचीन खंडहरों एवं स्मारकों का अध्ययन सम्मिलित है I डॉक्टर आर डी बनर्जी ने 1921 -22 में सिन्हा प्रांत में मोहनजोदड़ो तथा पंजाब में हड़प्पा की खुदाई कराई जिससे ऐसे तत्व उजागर हुए की इतिहास की धारा ही बदल गई I मोहनजोदड़ो की खुदाई ने यह प्रमाणित किया कि भारतीय सभ्यता आर्यो से पहले की है स्टेन ने लिखा है कि अन्य अनेक स्थानों यथा गया तक्षशिला भरहुत सांची आदि की खुदाई से प्राप्त सामग्री से इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई है I

अभिलेख-

अब तक सैकड़ो अभिलेख स्तंभ लेख ताम्रपत्र आदि सम्मिलित है I अब तक सैकड़ो अभिलेख अनावृत्त हो चुके हैं जिनसे प्राचीन भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण में सुविधा हुई है I यह अभिलेख अथवा उत्कीर्ण लेख देश विदेश के विभिन्न भागों और भाषाओं में प्राप्त हुए हैं I जिनसे राजाओं और उनके समय की राजनीतिक सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों पर काफी प्रकाश पड़ा है I इनके अभाव में भारतीय इतिहास के अनेक पहलू बदले ही रहते विदेशी अभिलेख भी भारतीय इतिहास के निर्माण में बड़े सहायक रहे हैं I भारत और ईरान के राजनीतिक संबंध की पुष्टि पर्सीपोलिस तथा नक्शय ए रुस्तम के अभिलेखों से होती है I इसी तरह एशिया माइनर में बोगज कोई का अभिलेख आर्यों के संक्रमण का संकेत देता है I इन अभिलेखों ने वैदिक देवों का उल्लेख करके वैदिक सभ्यता की प्राचीनता को सिद्ध किया है I ताम्र पत्र पर अंकित लेखो का बहुत महत्व है किंतु अभी तक उसका ठीक उपयोग नहीं हुआ है  I अलतेकर के अनुसार ताम्र पत्रों के उल्लेख राजकवियों या अधिकारियों द्वारा लिखे जाते थे I अतः उनमें अतिशयोक्ति काफी है I

मुद्राएँ- 

ईशा से पूर्व 296 से 300 ई तक के भारत के इतिहास की जानकारी हमें अधिकतर तत्कालीन मुद्राओं से प्राप्त होती है I मुद्राओं द्वारा हमें अनेक राजाओं के नाम मालूम हो जाते हैं जो संभवत उनके बिना विस्मृति के गर्भ में विलीन हो गए होते बैक्ट्रियन शक पल्लव आदि राजाओं से संबंधित अध्ययन मुख्यतः मुद्राओं पर ही आधारित था  I इसे राजा के राज्य विस्तार और देश के सांस्कृतिक जीवन का भी संकेत मिलता है  I गुप्तकालीन मुद्राएं बहुत ही कलात्मक है जिनके तत्कालीन कला और साहित्य की अवस्था का बोध होता है I राजाओं की वंशावलियां उत्तराधिकार तिथि क्रम आदि को ठीक करने में भी मुद्राओं से बहुत सहायता मिलती थी  I मुद्राओं पर जो अभिलेख हैं उनसे अनेक नगर राज्यों का अस्तित्व सिद्ध होता है I शिवि मालव अर्जुनायन कुणिदे यौधेय  आदि गणतंत्रों का अस्तित्व मुद्रालेखो से स्पष्ट हो जाता है  I मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक स्थिति का भी अनुमान होता है I भारत में रोमन मुद्राएं पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुई है जिसे भारत एवं रोमानो के बीच व्यापार का पता चलता है तथा यह तथ्य भी उजागर होता है कि प्राचीन काल में भारतीय दूर-दूर तक यात्राएं करते थे I कुषाण कालीन एवं गुप्तकालीन मुद्राएं ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है  I कुछ सामग्री विवादास्पद है पंचमार्क सिक्के व्यक्तिगत रूप से निगयों के थे किंतु बाद के खोजो के अनुसार वे अधिकृत राज्याधिकारी द्वारा प्रसारित होते थे I डॉक्टर जायसवाल के अनुसार वह मौर्य कालीन थे I

स्मारक- 

प्राचीन मंदिरों बिहारों स्तूपों मूर्तियों भवनों एवं अन्य अन्य कलाकृतियों से तत्कालीन सामाजिक और धार्मिक जीवन का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है I तक्षशिला के भग्नावशेषों से कुषाण वंश का पर्याप्त वर्णन मिलता है और पाटलिपुत्र के खंडहरों ने मौर्य वंश की जानकारी में पर्याप्त वृद्धि की है I झांसी देवगढ़ कानपुर आदि के भीतरी गांव के मंदिर गुप्तकालीन कला का चित्र प्रस्तुत करते हैंI  हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के अवशेषों ने तो एक अति प्राचीन सभ्यता को ही उजागर कर दिया है I एशिया के दक्षिण पूर्व में स्थित देश और द्वीपों में प्राप्त स्मारक भी भारतीय इतिहास के एक ऐसे अध्याय पर प्रकाश डालते हैं जिससे जानने का अन्य कोई साधन प्रायः उपलब्ध नहीं है I तिथि निर्णय में भी भग्नावशेषों का बड़ा महत्व होता है I कलाकृतियों से उसे समय के धार्मिक विचारों पर प्रकाश पड़ता हैI  प्राचीन स्मारकों का महत्व राजनीतिक इतिहास जानने में उतना नहीं है क्योंकि उनमें राजनीतिक घटनाओं का उल्लेख करना कठिन था तथा कभी-कभी राजाओं का नाम उनके वंश और साथ ही अपनी तकनीकी के आधार पर उनका अनुमानित काल बताने में यह सहायक सिद्ध होते हैं I

निष्कर्ष- 

इस प्रकार प्राचीन भारतीय इतिहास के अनगिनत और नाना प्रकार के स्रोत हैं जो यत्र तत्र उपलब्ध होते हैं I इन स्रोतों से सूक्ष्म अध्ययन के आधार पर प्राचीन भारत के इतिहास का क्रमबद्ध निर्माण किया जा रहा है I ऋग्वेद काल से पूर्व के इतिहास के लिए प्राचीन नगरों की खुदाईयों से प्राप्त अवशेष ही मुख्य साधन है I ऋगवैदिक काल से लेकर ईसा पूर्व चौथी शताब्दी तक के इतिहास के लिए हमें प्रधान रूप से हिंदुओं बौद्धों और जैनियों के धार्मिक साहित्य पर निर्भर रहना पड़ता है I धार्मिक ग्रंथो में राजनीतिक घटनाओं का क्रमानुसार और विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर 1000 ईशा तक के काल के लिए हमें सौभाग्यवश नाना प्रकार के स्रोत उपलब्ध है I

संदर्भ ग्रंथ

१- नियार्कस  का विवरण स्ट्राम्बो और एरियन  के लेखों में संरक्षित है एरिस्टोबुलस की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ दी वार एरियन एवं प्लुटार्क के ग्रन्थो में संग्रहित है I

२-उसका संपर्क उत्तर पश्चिम क्षेत्र से ही रहा है और वहां जो कुछ देखा था वह सारे भारत पर लागू नहीं हो सकता है I दूसरी मुख्य बात यह थी कि उसके वर्णन यूनानी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं तथा पक्षपात पूर्ण दृष्टिकोण के लिए हुए हैंI

३-हाल में ही कालीबंगा अहिछत्त लोथल आदि की खुदाईयों ने ऐतिहासिक जानकारी को बढ़ाया है I शिशुपालगढ़, राजगृह, अधिक ,मेड्ड ,आदि स्थानों के उत्खनन से प्राप्त सामग्री से भी प्राचीन भारतीय इतिहास लिखने में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है

४-अशोक के अभिलेख हाथी गुम्फा अभिलेख जूनागढ़ अभिलेख गुप्तकालीन अभिलेख विशेष कर समुद्रगुप्त का प्रयाग अभिलेख प्रतिहार और पाल राजाओं के अभिलेख भारतीय इतिहास के विभिन्न पक्षों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं I

५-पूर्व गुप्तकालीन सोने चांदी की मुद्राएं यह आभास देते हैं कि उस समय आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी उत्तर कालीन गुप्त मुद्राओं का हास उस समय की कमजोर आर्थिक स्थिति को प्रकट करता है I

६-जावा सुमात्रा मलाया आदि में ऐसे चिन्ह प्राप्त हुए हैं जो भारत का अन्य देशों से सामाजिक व सांस्कृतिक संबंध प्रकट करते हैंI

Authored by Dr. Viplav, Professor, ChandraKanth Mahavidlaya, Secendrabad, Uttar Pradesh.

Published by,